Posting Zero: What is Posting Zero? ‘पोस्टिंग ज़ीरो’: युवा पीढ़ी दुनिया भर में सोशल मीडिया से हो रही दूर
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दुनिया भर में सोशल मीडिया उपयोग 10% गिरा, युवा पीढ़ी विज्ञापनों और AI कंटेंट के कारण प्लेटफ़ॉर्म से ऊब चुकी है।
‘पोस्टिंग ज़ीरो’ ट्रेंड के तहत उपयोगकर्ता निजी जीवन की पोस्टिंग लिखना बंद कर रहे हैं, इससे सोशल प्लेटफ़ॉर्म का मूल स्वरूप बदल रहा है।
एनशिटिफिकेशन और डेड इंटरनेट थ्योरी जैसी अवधारणाएँ बता रही हैं कि प्लेटफ़ॉर्म कैसे अनुभव बिगाड़कर केवल लाभ कमाने पर केंद्रित हो गए।
नई दिल्ली / इंटरनेट के युग में जहां हर पल ऑनलाइन रहने का दबाव बढ़ता जा रहा था, वहीं एक चौंकाने वाली वैश्विक प्रवृत्ति सामने आ रही है- सोशल मीडिया का उपयोग दुनिया भर में लगातार गिर रहा है। फ़ाइनेंशियल टाइम्स द्वारा 50 देशों के 2.5 लाख ऑनलाइन उपयोगकर्ताओं पर किए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि सोशल मीडिया एक्टिविटी लगभग 10% कम हो गई ਹੈ और सबसे बड़ा असर युवा पीढ़ी पर पड़ा है।
इसी बदलते परिदृश्य ने जन्म दिया है एक नए इंटरनेट-कल्चर शब्द को “पोस्टिंग ज़ीरो”।
🔍 ‘पोस्टिंग ज़ीरो’ क्या है?
न्यू यॉर्कर के लेखक काइल चैका ने अपनी कॉलम Infinite Scroll में एक नई अवधारणा रखी पोस्टिंग ज़ीरो जहाँ साधारण लोग धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर अपनी निजी ज़िंदगी के अपडेट पोस्ट करना बंद कर रहे हैं।
वह लिखते हैं कि सोशल मीडिया कभी एक ऐसी जगह थी जहाँ लोग अपने नाश्ते की फोटो, अपने पालतू जानवरों के अपडेट, और दोस्तों के साथ बिताए पलों को साझा करते थे। लेकिन आज के प्लेटफॉर्म विज्ञापनों और AI जनरेटेड कंटेंट से पट चुके हैं।
चैका के अनुसार,
“पोस्टिंग ज़ीरो वह क्षण है जब आम लोग सोशल मीडिया के शोर, थकान और एक्सपोज़र से ऊबकर सब कुछ साझा करना बंद कर देंगे।”
🌐 क्यों घट रही है सोशल मीडिया एक्टिविटी?
1. ओवर-कमर्शियलाइज़ेशन: दोस्त कम, विज्ञापन ज्यादा
आज यूज़र्स की टाइमलाइन का बड़ा हिस्सा एल्गोरिदम द्वारा परोसे गए विज्ञापन, ट्रेंडिंग रील्स और AI के बनाए वीडियो से भरा हुआ है।
इस बदलाव ने सोशल मीडिया को एक कंपनी-चालित बाज़ार में बदल दिया है और उपयोगकर्ता अब खुद को इसका केंद्र नहीं, बल्कि एक ‘डेटा प्रोडक्ट’ समझने लगे हैं।
2. कंटेंट का बॉटिफिकेशन: ‘डेड इंटरनेट थ्योरी’ की चर्चा तेज
डेड इंटरनेट थ्योरी बताती है कि इंटरनेट पर मौजूद बहुत-सा कंटेंट अब इंसानों द्वारा नहीं, बल्कि बॉट्स, AI मॉडल्स और ऑटोमेटेड कंटेंट-मिल्स से आ रहा है।
चैका लिखते हैं कि:
“जब सामान्य लोग गायब हो जाते हैं, तो सोशल मीडिया केवल कॉरपोरेट मार्केटिंग और AI स्लोप का कचरा बनकर रह जाता है।”
3. एनशिटिफिकेशन: जब प्लेटफ़ॉर्म खुद को खराब करने लगते हैं
टेक पत्रकार कोरी डॉक्टरो ने 2022 में एक शब्द गढ़ा “enshittification” जो बताता है कि कैसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म समय के साथ खराब होते चले जाते हैं।
उन्होंने इसे तीन चरणों में समझाया:
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प्लेटफ़ॉर्म शुरू में उपयोगकर्ताओं को खुश करते हैं।
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फिर उपयोगकर्ताओं को दबाकर व्यापारिक ग्राहकों को प्राथमिकता देते हैं।
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अंत में व्यापारिक ग्राहकों को भी निचोड़कर खुद अधिक लाभ लेने लगते हैं।
यह प्रक्रिया आज लगभग हर बड़े सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर दिख रही है।
👤 युवा पीढ़ी क्यों हो रही है दूर?
18–30 वर्ष की पीढ़ी जो कभी इंटरनेट से सबसे अधिक जुड़ी थी, अब बदल चुकी है।
वे “हमेशा ऑनलाइन” संस्कृति से मानसिक थकान महसूस कर रहे हैं-
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एल्गोरिदमिक दबाव
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लाइक्स और व्यूज़ का स्ट्रेस
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प्राइवेसी और ओवर-एक्सपोज़र का डर
ने उन्हें सोशल मीडिया से दूर कर दिया है।
वे अब रियल लाइफ इंटरैक्शन, छोटे प्राइवेट ग्रुप्स, क्लोज़ फ्रेंड्स लिस्ट, या ऑफलाइन गतिविधियों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
🚶♂️ क्या सोशल मीडिया का भविष्य खत्म हो रहा है?
पोस्टिंग ज़ीरो का अर्थ यह नहीं कि सोशल मीडिया मर रहा है-बल्कि इसका मूल स्वरूप बदल रहा है।
लोग अब बड़े पब्लिक स्पेस की बजाय प्राइवेट चैट्स, क्लोज़्ड कम्युनिटी और ग्रुप्स में ज़्यादा समय बिता रहे हैं।
प्लेटफॉर्म्स पर लोग तो मौजूद हैं, लेकिन कंटेंट पोस्ट करने वाली भीड़ गायब हो रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्लेटफॉर्म अपनी उपयोगकर्ता-केंद्रित नीतियों को वापस नहीं लाते, तो यह बदलाव स्थायी हो सकता है।